kabirdas ji ke dohe
|| कबीरदास जी के दोहे ||
त्याग तोह ऐसा कीजिये , सब कुछ एकहि बार |
सुनिए गुण की बारता , औगुन लीजै नाहीं |
छोड़े जब अभिमान को , सुखी भया सब जीव|
जाति न पूछो साधु की , पूछि लीजिये ज्ञान |
संगत कीजै साधु की कभी न निष्फल होय |
मारिये आसा सापनी , जिन डसिया संसार |
कागा काको धन हरै , कोयल काको देत |
त्याग तोह ऐसा कीजिये , सब कुछ एकहि बार |
सब प्रभु का मेरा नहीं , निहचे किया विचार ||
सुनिए गुण की बारता , औगुन लीजै नाहीं |
हंस छीर को गहत है , नीर सो त्यागे जाहि ||
छोड़े जब अभिमान को , सुखी भया सब जीव|
भावे कोई कछु कहै , मेरे हिय निज पीव ||
जाति न पूछो साधु की , पूछि लीजिये ज्ञान |
मोल करो तलबार का , पड़ा रहन दो म्यान ||
संगत कीजै साधु की कभी न निष्फल होय |
लोहा पारस परस ते सो भी कंचन होय | |
मारिये आसा सापनी , जिन डसिया संसार |
ताकि औषद तोष है , ये गुरु मंत्र विचार ||
कागा काको धन हरै , कोयल काको देत |
मीठा शब्द सुनाय के, जग अपनों करि लेत ||
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