Tulsidas ji ke dohe

 तुलसीदास जी के दोहे 

काम क्रोध मद लोभ रत , गृहासक्त दुःखरूप 

ते किमि  जानहि रघुपतहिं , मूढ़ परे भव कूप 

कहिबे कहें रसना रची , सुनिबे कहँ किये कान 

धरिबे कहँ चित हित सहित , परमारहिथ सुजान 

तुलसी भलो सुसंग तें , पोच कुसंगति सोइ 

नाउ किन्नरी तीर असि , लोह बिलोकहु लोइ 

राम कृपा तुलसी सुलभ , गंग सुसंग  समान 

जो जल परै जो जन मिलै , कीजै आपु समान 

तुलसी या संचार में , भाँति भाँति के लोग 

सबसों हिल मिल चालिये नदी नाव संयोग 

तुलसी पावस के समय , धरी कोकिलन मौन 

अब तो दादुर बोलिहे  , हमे पूछिए कौन 

तुलसी असमय के सखा , धीरज  धरम विवेक 

सहित साहस सत्यब्रत , राम भरोसो एक 

tulsidas ji ke dohe


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